एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने के भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के फैसले को मास्टरस्ट्रोक के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन देवेंद्र फडणवीस के उपमुख्यमंत्री होने से इस रणनीति को खतरा भी है
महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश की तरह शासन करने के लिए कठिन राज्य है। लेकिन फडणवीस ने 2014 में मुख्यमंत्री बनने के बाद 2019 तक राज्य में प्रभावी ढंग से शासन किया था। वह देश के उन कुछ नेताओं में से एक थे जो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार की ताकत का सामना कर सकते थे
जब महाविकास अघाड़ी बनी थी, तब एमवीए नेता कहते थे कि सरकार तब तक चलेगी जब तक पवार, सोनिया गांधी और उद्धव ठाकरे चाहते हैं। फडणवीस शिवसेना विधायकों की नब्ज पकड़ने में कामयाब रहे और एमवीए को नीचे लाने में भी सफल हुए। पार्टी ने उन्हें उपमुख्यमंत्री का पद लेने के लिए मजबूर करने से बड़ा संदेश दिया
फडणवीस का डिप्टी CM बनना हैरान करने वाला फैसला-
यह हैरान करने वाला फैसला था, क्योंकि फडणवीस गोवा में भाजपा को सत्ता में लाने में कामयाब रहे और 2019 के चुनावों के बाद भी पार्टी को एक साथ रखा था। भाजपा नेता ने कहा, “हमारे 106 विधायकों में से एक भी सत्ता में आने के बाद एमवीए में नहीं आया। हम बहुत मुश्किल राज्यसभा और एमएलसी चुनाव जीतने में कामयाब रहे। इसमें फडणवीस की बड़ी भूमिका रही
मुंबई नगर निगम चुनाव जीतना चाहती है और अंततः शिंदे को संगठन के रूप में शिवसेना को नियंत्रित करना है। फडणवीस के ना कहने के बावजूद उन्हें शिंदे का डिप्टी बनाना दिखाता है कि यहां का बॉस कौन है। यही संदेश दिल्ली ने दिया
दो शक्ति केंद्र- मुख्यमंत्री और प्रशासन-
राजनीतिक जानकार ने बताया, “भाजपा यह सार्वजनिक कर रही है कि वह फडणवीस को शिंदे का डिप्टी बनाना चाहती थी, ऐसे में शिंदे और फडणवीस के संबंध प्रभावित हो सकते हैं। ऐसे में दो शक्ति केंद्र होंगे- एक मुख्यमंत्री और दूसरा प्रशासन पर जिसकी पकड़ होगा
इससे सरकार चलाने में समस्या हो सकती है। यह याद रखना होगा कि नीतीश कुमार ने जीतन मांझी को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन बाद में उनके साथ विवाद होने में समय नहीं लगा।