जब भी घर में नई बहू आती है तो लोग तारीफ में यही कहते हैं कि घर में लक्ष्मी का गृह प्रवेश हुआ है। किसी के घर में उन्नति हो तब भी लोग कहते हैं कि इनकी पत्नी लक्ष्मी स्वरूप है जिनके कदम से धन समृद्धि आ रही है
ठीक इसी तरह लड़कों को ससुराल में विष्णु स्वरूप मानकर उनकी आरती उतारी जाती है और मान-दान दिया जाता है। इसके पीछे बड़ा ही रोचक कारण है। देवी पार्वती हिमालय की पुत्री है। इस नाते देवी पार्वती की पूजा बेटी रूप में की जाती है, नवरात्र से एक दिन पहले महालया मनाया जाता है इस दिन यह माना जाता है कि पार्वती अपने पुत्रों के साथ पृथ्वी पर अपने मायके आ रही हैं और नवरात्र के नौ दिनों धरती पर यानी अपने मायके में रहेंगी
इसलिए कभी भी बहू या पुत्री की तुलना देवी पार्वती से नहीं की जाती है। भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर कई बार अवतार लिया जिनमें राम अवतार विशेष महत्वपूर्ण है। राम अवतार में इन्होंने लक्ष्मी अवतार देवी सीता से विवाह किया और अयोध्यावासियों ने देवी सीता को बहू रूप में स्वीकार किया
इसलिए बहू की तुलना लक्ष्मी से की जाती है।राम दामाद बनकर मिथिला पहुंचे थे इसलिए मिथिलावासी विष्णु और राम को दामाद रूप में भी पूजते हैं। जबकि देवी सीता को बेटी। इसलिए बेटियों को सीता स्वरूप माना जाता है। वैष्णव परंपरा के नियमानुसार बहूओं को लक्ष्मीस्वरूप माना जाता है।